प्रशांत पोल

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से बस्तर (जगदलपुर) जाते हुए रास्ते में एक पड़ाव आता हैं. कांकेर. जिला हैं. और अब तो छत्तीसगढ़ का बड़ा शहर बनने जा रहा हैं. कल तक इस कांकेर की जिला पंचायत के सी ई ओ थे, श्री शिव अनंत तायल. आई ए एस अधिकारी हैं. सेंत कबीर स्कूल, चंडीगढ़ में पले / बढे.

इन महाशय ने दो दिन पहले अपने फेसबुक की वाल पर एक टिपण्णी की. टिपण्णी पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को लेकर थी. तायल जी ने लिखा था, “दीनदयाल उपाध्याय का योगदान क्या हैं, जो उनका इतना ढिंढोरा पीटा जा रहा हैं..? वेबसाईट पर दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानवतावाद पर सिर्फ चार लेक्चर्स मिलते हैं. वह भी पहले से स्थापित विचार हैं.”

तायल जी आगे लिखते हैं, “इतिहासकार रामचंद्र गुहा की बुक, ‘मेकर्स ऑफ़ मॉडर्न इंडिया’ में आर आर एस के बड़े नेताओं का जिक्र हैं, लेकिन उपाध्याय उनमे कही नहीं हैं.”

टिपण्णी आने के बाद बवाल खड़ा हुआ. कल छत्तीसगढ़ सरकार ने तायल जी का तबादला रायपुर में मंत्रालय में कर दिया. तायल जी ने अपनी विवादस्पद टिपण्णी तो फेसबुक से हटा ली. लेकिन इस पर उन्होंने लिखा,

“ मैंने सुबह एक पोस्ट की थी, जिसमे पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर कुछ ‘स्वाभाविक’ सवाल किये गए थे. यह दिग्गजों की साख पर सवाल उठाने की मंशा बिलकुल नहीं थी. ‘अगर ऐसा कुछ हुआ हैं’, तो मैं इस के लिए माफ़ी मांगता हूँ.”

आने वाले कुछ दिनों तक शायद इस पर चर्चा हो. कांग्रेस और कम्युनिस्ट इसका विरोध करे, शायद सोशल मीडिया पर भी यह विवाद चले... लेकिन यह विषय इन सबसे कहीं अधिक गहरा हैं. तायल जी की टिपण्णी से कई प्रश्न खड़े होते हैं. वे साम्यवादी विचारधारा के लगते हैं. उनके फेसबुक पेज पर ‘फिडेल कास्त्रो’ का फोटो सहित उदाहरण इस बात का परिचायक हैं.

लेकिन मुख्य मुद्दा हैं, एक जिम्मेवार आईएएस अफसर, अगर साम्यवादी विचारधारा से ‘ब्रेनवाश’ होकर खुले आम सत्तारूढ़ पार्टी के आदर्शों और सिध्दांतों की धज्जियां उडाएगा, तो शासन कैसे चलेगा..? यह ध्यान रहे, प्रशासनिक अधिकारी केवल कार्य को अंजाम देने वाली ‘एजेंसी’ (Executing Officer) होते हैं. उनकी व्यक्तिगत विचारधारा से प्रशासन चलाने का अधिकार, हमारा संविधान उन्हें नहीं देता हैं.

सत्ता पर आरूढ़ पार्टी, लोगों द्वारा चुनी गयी पार्टी होती हैं. अर्थात उस पार्टी की विचारधारा को लोगों ने बहुमत के साथ स्वीकारा हैं, ऐसा इसका अर्थ होता हैं. याने, उस पार्टी की विचारधारा के अनुसार, संविधान के दायरे में, देश का प्रशासन चलाने का दायित्व इन प्रशासनिक अधिकारियों का होता हैं.

दुर्भाग्य से तायल जी इसे ठीक से समझे नहीं हैं..!

तायल जी बहुत सी बाते नहीं समझे हैं. ‘एकात्म मानवतावाद’ पर तायल जी को नेट पर कुछ नहीं मिला, यह समझ के परे हैं. तायल जी ने साम्यवादी इतिहासकार रामचंद्र गुहा की एकमात्र पुस्तक पढ़ी और उसके आधार पर दीनदयाल जी की कार्यों का जजमेंट किया. मानो रामचंद्र गुहा का सर्टिफिकेट ही भारतीय महापुरुषों की ‘रेटिंग’ तय करता हैं..!!

दीनदयाल उपाध्याय जी पर गूगल सर्च करने से पाच लाख इकतालीस हजार परिणाम सामने आते हैं. शायद तायल जी को वह नहीं दिखे. दीनदयाल जी पर पोर्टल समर्पित हैं (deendayalupadhyay.org), उसमे दीनदयाल जी के अनेकों लेख, अनेकों भाषण, उनके विचार, उनपर लिखी गयी पुस्तकें... सब मिलता हैं. तायल जी को यह भी नहीं दिखा...!

प्रश्न अकेले शिव अनंत तायल का नहीं हैं. ऐसी साम्यवादी या अंग्रेजी विचारधारा में पले / बढे अनेकों प्रशासनिक अधिकारियों का हैं. इनको भारत की ‘मिट्टी’ की जानकारी ही नही हैं. संपूर्ण निस्वार्थ सेवा भाव, ये समझ ही नहीं सकते.

दीनदयाल जी जैसा व्यक्ति चुनावों में जीतकर न आते हुए भी लाखों लोगों के प्रेरणाकेंद्र कैसे बन सकते हैं, यह सब इन अधिकारियों के समझ के बाहर की बात हैं. फिर ‘दैशिकशास्त्र’ और उस पर से दीनदयाल जी ने प्रतिपादित की हुई राष्ट्र के ‘चिती’ और ‘विराट’ की संकल्पना ये क्या जानेंगे...?

दुर्भाग्य से अधिकारी बनने के बाद भी इनको जो प्रशिक्षण दिया जाता हैं, वह भारतीय मूल्यों से कोसो दूर रहता हैं. आज भी मसूरी के ‘आईएएस प्रशिक्षण अकादमी’ में बुलाएं गए वक्ताओं में आपको सीताराम येचुरी, कारंथ जैसे खांटी साम्यवादी और कांग्रेसी ही अधिकतर मिलेंगे.

ऐसे अधिकारी जब जनता के बीच जाकर सरकार की योजनाओं को कार्यान्वित करेंगे, तो देश का क्या होगा, वह हम सब समझ सकते हैं. फिर मोदी जी लाख सर पटक ले...

ये ब्यूरोक्रेसी हैं...

जो मानती ही नहीं...!!

प्रशांत पोल