यूरोप में बवंडर..!
- प्रशांत पोल
पिछले तीन दिनों में यूरोप में दो बड़ी घटनाएं हुई. फ़्रांस के नीस में इस्लामी आतंकवादी, मोहम्मद लावेइज बूहलल ने फ़्रांस के राष्ट्रीय दिवस का जश्न मना रहे भीड़ को, भारी भरकम ट्रक से रौंद डाला. ८४ लोग मारे गए. २०० गंभीर रूप से जख्मी हैं. इन मे बच्चों की संख्या ज्यादा हैं.
नीस यह फ़्रांस का पाचवे क्रमांक का शहर हैं. पूर्व तट पर, समुद्र के किनारे हैं, और बड़ा ही सुंदर हैं. अपने ‘मरीन ड्राइव’ जैसे नीस के इलाके में १६ जुलाई की रात बड़ी सुहावनी थी. फ़्रांस के ‘बास्तिल डे’ (राष्ट्रीय दिवस) का अवसर था. भारी भीड़ रास्तों पर जमा थी. ज्यादा संख्या में बच्चे थे, जो आतिशबाजी का कमाल बड़ी उत्सुकता से देख रहे थे.
ऐसे खुशनुमा माहौल में, ‘इस्लामिक स्टेट’ का आतंकवादी मोहम्मद, किराए से लिया हुआ, १९ टन का भारी भरकम ‘रेफ्रिजिरेटर ट्रक’ लेकर इस हसती हसाती भीड़ में घुस गया. बच्चे, बूढ़े, सब को बर्बरता पूर्वक रौंदता हुआ यह ट्रक दो किलोमीटर तक चलता रहा. सड़क पर लाशों का ढेर बिछ गया... फ़्रांस पर इस्लामी आतंकवाद का एक और दर्दनाक हमला हो गया..!
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इस घटना के कुछ ही घंटों बाद, यूरोप के दुसरे छोर पर, दुनिया के एकमात्र सेक्युलर मुस्लिम राष्ट्र में ‘सैनिकी विद्रोह’ हो गया. तुर्कस्तान में राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोग़ान के खिलाफ कुछ सैनिकी कमांडरों ने विद्रोह का बिगुल फूंका. लेकिन राष्ट्रपति एर्दोगान होशियार निकले. उन्होंने अपने आई-फोन से सी एन एन को साक्षात्कार दिया और जनता से अपील की, कि सारे लोग लोकतंत्र बचाने के लिए रास्तों पर आ जाए. अंकारा और इस्तंबुल में १६ जुलाई की सारी रात जनता सड़कों पर थी. जनता के इस सक्रीय उपस्थिति से सैनिकों का विद्रोह विफल हो गया..!
तुर्कस्तान के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोग़ान की ‘जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी’ इस्लामी कट्टरपंथ की ओर झुकने वाली पार्टी हैं. पिछले कुछ वर्षों में तुर्कस्तान में मदरसे बढे हैं. इस्लामी कट्टरपंथियों की संख्या बढी हैं. तुर्कस्तान में जब जब भी ऐसा हुआ हैं, तुर्की सेना ने विद्रोह किया हैं, दखल दिया हैं. तुर्की सेना का स्वरुप अधिकतर धर्मनिरपेक्ष ही रहा हैं.
लेकिन इस बार सेना का विद्रोह सफल नहीं हो पाया. इसके दो कारण हैं –
- सेना के आंकलन में चुक हुई. राष्ट्रपति एर्दोग़ान, टी वी के माध्यम से लोगों तक पहुँच गए. लोगों को, वो ज़िंदा होने का, और सेना के विरोध में सड़कों पर उतरने का सन्देश गया.
- तुर्कस्तान की जनता में भी इस्लामी कट्टरतावाद बढ़ रहा हैं. इसलिए राष्ट्रपति के प्रति समर्थन उमड़ आया.
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यूरोप की इन दो घटनाओं के दूरगामी परिणाम होना तय हैं. पहला तो यह की अब तुर्कस्तान (टर्की) ने ‘यूरोपियन यूनियन’ में शामिल होने के सपने देखना बंद करना चाहिए. अभी तक यूरोपियन यूनियन के देश, टर्की के प्रवेश को टालते आ रहे थे. अब तो उसका प्रवेश पूर्णतः नकारा जाएगा. फ़्रांस और जर्मनी के स्वर इनमे मुखर होंगे. जर्मनी तो पहले से ही इतने ज्यादा आप्रवासी तुर्कियों को अपने देश में शरण देकर पछता रहा हैं. नीस की घटना में ‘इस्लामिक स्टेट’ ने जिस पाशवी पध्दति से, क्रूरतापूर्ण तरीके से बच्चों और बड़ों को मारा हैं, उसको देखते हुए पश्चिमी राष्ट्र, इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों से जरूर निपटेंगे..!
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आतंकवाद ने फिर इस्लाम का सहारा लिया हैं. विश्व की मानवता कलंकित हुई हैं. धृवीकरण की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा हैं. इस पार्श्वभूमी पर, यूरोप का यह दृश्य कुछ धुंधला, कुछ गहरा और कुछ श्याम वर्ण में दिख रहा हैं..!!
- प्रशांत पोल