कल जब समाचार पत्रों में यह समाचार छपेगा, तब अधिकतम समाचार पत्र इस समाचार को शीर्षक देंगे – ‘चीन के दबाब के आगे भारत झुका..! डोलकुन इसा का वीसा रद्द..!!
शीर्षक में मसाला तो हैं. लेकिन तथ्य नहीं हैं. हाँ, एक बात अवश्य हैं. डोलकुन इसा का वीसा रद्द होने से और उनके न आने से भारत को कुटनीतिक नुकसान तो होगा ही. भारत चाहता ही था की ये डोलकुन इसा भारत में आए. इसी उत्साह में, उनकी वीसा एप्लीकेशन मिलते ही भारत के विदेश मंत्रालय ने तुरंत उसे स्वीकृत कर दिया, और तय योजना के अनुसार यह समाचार, एजेंसीज को दे दिया गया. कुछ ही मिनटों में यह समाचार फ़ैल गया.
लेकिन कल जब इस की छाननी हुई होगी, तो वीसा एप्लीकेशन की खामियां दिखी होगी. असल में डोलकुन इसा ने ‘टूरिस्ट वीसा’ के अंतर्गत अर्जी दी थी. इसमें एक बहुत बड़ी खामी थी. टूरिस्ट वीसा पर आने वाले यात्री किसी भी परिचर्चा, परिसंवाद, धार्मिक प्रकट कार्यक्रम आदि में हिस्सा नहीं ले सकते.
इसी आधार पर विचार परिवार के संगठनों ने पिछले दो – तीन वर्षों में अनेक इसाई धर्मगुरुओं को भारत से लौटा दिया था. ये धर्मगुरु टूरिस्ट वीसा पर भारत में आते थे, और इसाईयों की ‘चंगाई सभाओं’ को, धर्म सभाओं को संबोधित करते थे. ये गैर कानूनी था.
और अगर भारत डोलकुन इसा को वीसा देता, तो इस गैरकानूनी प्रक्रिया में सरकार शामिल होती. इसीलिए यह वीसा रद्द होना आवश्यक था.
ये एक मौक़ा चुक गए तो क्या.. चीन की छाती पर मुंग दलते हुए धर्मशाला में २८ अप्रैल से चीन से निर्वासित लोगों का ‘लोकतंत्र बहाली संमेलन’ तो तय हैं..!!
- प्रशांत पोल