गुजरात चुनावों के प्रसंगवश – १
गुजरात के परिणाम भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की कल्पना से कुछ ही कम रहे. सार्वजानिक रूप से कुछ भी कहे, तो भी सौ से एक सौ दस की अपेक्षा थी. उस संख्या तक पहुचने में थोड़ी सी चूक हो गयी. व्हाट्सअप पर घुमने वाला एक व्यंग बड़ा सटीक था –
भाई, हिसाब तो कोई
गुजरातियों से सीखे
कांग्रेस को हरा दिया...
और भाजपा को डरा दिया..!
बात अगर सीखने की हैं, तो इस चुनाव से भाजपा को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. अगले चुनावों में अपने आप को मजबूत करने के लिये, इस चुनाव में भाजपा के लिये ‘गहरी सीख’ हैं.
एक महत्वपूर्ण बात शायद आपने ‘नोटिस’ की होगी. कुछ महीने पहिले तक अपने केन्द्रीय कार्यालय और गुजरात के राज्य कार्यालय के कर्मचारियों का वेतन देने के लिए तरसती कांग्रेस, इस चुनाव में अचानक धनसंपन्न हो गई..!
गुजरात भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने पिछले सप्ताह बताया था की इस चुनाव में पहली बार भाजपा, कांग्रेस की तुलना में प्रचार में पिछड़ गई थी. इतना ही नहीं, सोशल मीडिया की अनभिषिक्त सम्राट, भाजपा, इस चुनाव के शुरूआती दौर में सोशल मीडिया में, कांग्रेस से पीछे थी.
मात्र गुजरात ही नहीं, कांग्रेस समर्थित मीडिया हाउसेस के पास पिछले दो महीनों में भारी पैसा आया हैं. कांग्रेस के खेमे में २०१९ की तैयारी जोश-खरोश के साथ चल रही हैं. वास्तविकता में ‘गुजरात जीतना संभव नहीं’, यह तो युवराज राहुल और श्रीमती सोनिया जी को भी मालूम था. लेकिन इस चुनाव में भाजपा को ‘डरा देना’, यह कांग्रेस को लगी लाटरी हैं.
पूरे देश में सत्ता से पिछड़ रही कांग्रेस के पास अचानक इतनी ‘फंडिंग’ कहां से आयी..? इसको ठीक से समझना होगा. यह ‘दो और दो चार’ का सीधा-साधा खेल नहीं हैं. दुनिया की ऐसी अनेक ताकतें हैं, को भाजपा को, मोदी जी को, दिल्ली की सत्ता पर देखना कतई पसंद नहीं करती. ऐसे देशों से, संस्थाओं से, लोगों से कांग्रेस को ‘सहायता’ मिलना, यह देश की संप्रभुता के लिए, देश की एकता के लिए बहुत बड़ा ख़तरा हैं.
२०१९ के चुनावों में पूरे डेढ़ वर्ष हैं. इन डेढ़ वर्षों में, इस ‘फंडिंग’ से अनेक खेल चलेंगे. हिंदुत्व के मजबूत होते जा रहे वस्त्र को, जातियों के धागों में तार – तार करने का पूरा प्रयास किया जाएगा...
राष्ट्रीय विचारों पर प्रहार करता, बाहरी ताकतों के पैसे पर पला बढ़ा यह संघर्ष अब दिनों दिन गहराता जाएगा, यह सुनिश्चित हैं..!
- प्रशांत पोल