प्रौढप्रताप पुरंदर
गोब्राम्हण प्रतिपालक
क्षत्रिय कुलावतंस.....
हिंदू पदपातशाही के निर्माते
छत्रपति श्री शिवाजी महाराज..!
जेठ की शुध्द त्रयोदशी. आनंद नाम संवत्सर.
अंग्रेजी वर्ष १६७४.
पवित्र दिन. मंगल प्रसंग.
भारत वर्ष में इतिहास बन रहा था...
सैकड़ों वर्षों की इस्लामी गुलामी को फेंककर
अपने देश में,
अपना हिन्दू साम्राज्य स्थापित हो रहा था...!
छत्रपति शिवाजी महाराज,
अभिषिक्त हिन्दू सम्राट बनने जा रहे थे..!
देवगिरी, वारंगल, कर्णावती, विजयनगर के
ध्वस्त साम्राज्यों के
अपमान का
बदला लिया जा रहा था..
हिन्दवी साम्राज्य निर्माण हो रहा था..!
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यह हिन्दवी साम्राज्य
भयमुक्त था...
माताएं, बहने सोने / चाँदी के जेवर पहनकर
निर्भयता से घूम सकती थी.
महिलाओं पर बुरी नजर रखनेवालों के
हाथ / पैर काट दिए जाते थे,
रांझे पाटिल के जैसे..!
किसान खुश थे...
उनके खेत की लगान
अनाज के पैदावार के आधार पर थी. वतनदारी ख़त्म हुई थी.
विकेन्द्रित प्रशासन था
लेकिन, केन्द्रीभूत कायदे कानून थे.
भ्रष्टाचार की एक ही जगह थी –
मृत्युदंड..!
यह न्याय का शासन था.
सर्वसामान्य प्रजा का अपने राजा पर
पूर्ण विश्वास था..!
‘राज्यव्यवहार कोष’ के माध्यम से
विदेशी फारसी शब्द निकालकर
अपने संस्कृत निष्ठ शब्दों का
प्रचलन बढ़ रहा था..!
सेना में अनुशासन था.
नए शस्त्रों का प्रयोग हो रहा था.
नौसेना ताकतवर बन रही थी
‘सिंधुदुर्ग’ जैसे समुद्री किले बन रहे थे...
पश्चिमी भारत की सागरी सीमा को
सुरक्षित करने के सारे प्रयास हो रहे थे..
एक समृध्द, खुशहाल, निर्भय
स्वराज्य का निर्माण हो रहा था...!
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छत्रपति शिवाजी महाराज ने
जिस ‘हिन्दवी स्वराज्य’ का निर्माण किया था..
उसका आंकलन होता हैं,
उनकी मृत्यु के पश्चात...
जब दिल्ली का
शहेनशाह औरंगजेब
इस हिन्दवी साम्राज्य को मसलने के लिए
दिल्ली और आगरा की
ऐय्याश जिंदगी को छोड़कर
महाराष्ट्र के पहाड़ों में, गहरी खाइयों में
लड़ने के लिए आया...!
जो आया, वो फिर कभी
दिल्ली / आगरा पहुच ही नहीं पाया..!
पच्चीस वर्ष..
पूरे पच्चीस वर्ष
औरंगजेब शिवाजी के मावलों से
लड़ता रहा / भिड़ता रहा
लेकिन नहीं जीत पाया इस हिन्दू साम्राज्य को..!
आख़िरकार इसी महाराष्ट्र में
कबर खुदी औरंगजेब की..!!
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जब भी पराक्रम को, साहस को, सुशासन को
नैतिक चारित्र्य का आधार मिलता हैं
तब
छत्रपति शिवाजी महाराज का
शाश्वत मूल्यों पर आधारित
हिन्दवी साम्राज्य निर्माण होता हैं..!!
- प्रशांत पोळ