उद्गम से लेकर सागर समागम तक नर्मदा का जो तेज, जो सौंदर्य, जो अठखेलियाँ और जो अदाएँ दिखाई देती हैं वे जबलपुर के अलावा अन्यत्र दुर्लभ हैं। प्रकृति ने तो इस क्षेत्र में नर्मदा को अतुलित सौंदर्य प्रदान किया ही हैं, स्वयं नर्मदा ने भी अपने हठ और तप से अपने सौंदर्य में वृद्धि इसी क्षेत्र में की है।

यहाँ नर्मदा ने हठ और तप से रास्ता भी बदला है। पहले कभी वह धुआँधार से उत्तर की ओर मुड़कर सपाट चौड़े मैदान की ओर बहती थी। उसकी धार के ठीक सामने का सौंदर्य संभवतः नर्मदा को भी आकर्षित करता होगा।

तभी तो लगातार जोर मारती लहरों से चट्टानों का सीना चीरकर हजारों वर्ष के कठोर संघर्ष के बाद नर्मदा ने यह सौंदर्य पाया है जिसे निहारने देश ही नहीं, विदेशी पर्यावरण प्रेमी भी खिंचे चले आते हैं। संगमरमरी चट्टानों के बीच बिखरा नर्मदा का अनूठा सौंदर्य देखते न तो मन अघाता है और न आँखें ही थकती हैं। भेड़ाघाट, तिलवाराघाट के आस-पास के क्षेत्र का इतिहास १५० से १८० करोड़ वर्ष पहले प्रारंभ होता है। कुछ वैज्ञानिक इसे १८० से २५० करोड़ वर्ष पुरानी भी मानते हैं।

भेड़ाघाट के नाम को लेकर अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। प्राचीन काल में भृगु ऋषि का आश्रम इसी क्षेत्र में था। इस कारण भी इस स्थान को भेड़ाघाट कहा जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी स्थल पर नर्मदा का बावनगंगा के साथ संगम होता है।

लोक भाषा में भेड़ा का अर्थ भिड़ना या मिलना है। इस मत को मानने वालों के अनुसार इसी संगम के कारण इस स्थान का नाम भेड़ाघाट हुआ।

एक अन्य मत के अनुसार यह स्थान १,७०० वर्ष पूर्व शक्ति का केंद्र था। शैव मत वालों के अलावा शक्ति के उपासक भी यहाँ आते थे इसलिए निश्चय ही यह स्थान कभी भैरवीघाट रहा होगा और बाद में अपभ्रंश होकर भेड़ाघाट हो गया। गुप्तोत्तर काल में संभवतः इस मंदिर का विस्तार किया गया और इसमें सप्त मातृकाओं की प्रतिमाएँ स्थापित की गईं थीं।

ये प्रतिमाएँ आज भी भेड़ाघाट स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर में हैं। लगभग १० वीं शताब्दी में त्रिपुरी के कल्चुरि राजाओं के शासनकाल में इस मंदिर का और विस्तार किया गया। इन सभी मतों के पीछे तर्क और प्रमाण का आधार है। इनमें इतना तो सच है कि इस स्थान को नर्मदा ने अतुलित सौंदर्य प्रदान किया है।

७४८ हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह क्षेत्र आज शैव, वैष्णव, जैन तथा अन्य मत-मतांतर मानने वालों के लिए आस्था का केंद्र है। पर्यटन और सौंदर्य की दृष्टि से तो यह महत्वपूर्ण है ही। इस क्षेत्र में नौका विहार नौका विहार द्वारा भ्रमण करते समय नर्मदा के अलौकिक सौंदर्य के दर्शन होते हैं। बंदरकूदनी तक पहुँचते-पहुँचते पर्यटक संगमरमरी आभा से अभिभूत होता है और रंग-बिरंगे पत्थर उसे मुग्ध कर देते हैं।

जबलपुर के भेड़ाघाट में जहाँ से नौका विहार शुरू होता है वहाँ स्थित है पचमढ़ा का प्रसिद्ध मंदिर। यहाँ एक ही प्रांगण में चार मंदिर हैं। दो सौ साल पुराने इन मंदिरों का सौंदर्य अद्वितीय है। ये सभी मंदिर शिव को समर्पित हैं। जबलपुर में इसके अलावा भी अनेक ऐसे स्थान हैं जो नर्मदा क्षेत्र के पर्यटन में चार चाँद लगाते हैं। इनमें ग्वारीघाट, तिलवाराघाट, लम्हेटाघाट, गोपालपुर, घुघुआ फॉल, चौंसठ योगिनी मंदिर और पंचवटीघाट जैसे सौंदर्य से परिपूर्ण स्थल हैं।

चौंसठ योगिनी मंदिर जबलपुर, मध्य प्रदेश का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह मंदिर जबलपुर की ऐतिहासिक संपन्नता में एक और अध्याय जोड़ता है। प्रसिद्ध संगमरमर चट्टान के पास स्थित इस मंदिर में देवी दुर्गा की ६४ अनुषंगिकों की प्रतिमा है। इस मंदिर की विषेशता इसके बीच में स्थापित भागवान शिव की प्रतिमा है, जो कि देवियों की प्रतिमा से घिरी हुई है। इस मंदिर का निर्माण सन १००० के आसपास कलचुरी वंश के शासकों ने करवाया था।

जबलपुर का 'चौंसठ योगिनी मंदिर' सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल भेड़ाघाट व धुआंधार जलप्रपात के नजदीक एक ऊंची पहाड़ी के शिखर पर स्थापित है। पहाड़ी के शिखर पर होने के कारण यहां से काफ़ी बड़े भू-भाग व बलखाती नर्मदा नदी को निहारा जा सकता है। चौंसठ योगिनी मंदिर को दसवीं शताब्दी में कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने मां दुर्गा के रूप में स्थापित किया था। लोगों का मानना है कि यह स्थली महर्षि भृगु की जन्मस्थली है, जहां उनके प्रताप से प्रभावित होकर तत्कालीन कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया।