आज प्रातः, जब जबलपुर नींद की आगोश से बाहर आ रहा था, नर्मदा माई के भक्त, ग्वारीघाट में स्नान के लिए जा रहे थे, तब ग्वारीघाट के झंडा चौक पर बवाल मचा हुआ था. उस चौक से, ग्वारिघाट पुलिस थाने तक पथराव हो रहा था. पुलिस के वाहनों को आग लगाई जा रही थी.
कारण था, लटकारी पड़ाव की महाकाली के विसर्जन जुलूस को पुलिस, नर्मदा माई में जाने से रोक रही थी. नर्मदा में प्रतिमाओं के विसर्जन पर न्यायालय के आदेश द्वारा (पर्यावरण को दृष्टिगत रखते हुए), प्रतिबंध हैं. लेकिन सतरा घंटे से विसर्जन जुलूस में चल रहे लोगों ने इसे नहीं माना, और उन्होंने प्रतिमा को नर्मदा नदी की तरफ मोड़ा. पुलिस ने जब इसे रोका, तो कार्यकर्ताओं ने पथराव चालू किया. और बवाल मच गया..!
कई प्रश्न खड़े होते हैं, इस प्रकरण से. नर्मदा के दक्षिण तट पर दशहरा दिनांक १८ अक्तूबर को मनाया गया. उत्तर तट पर, अर्थात समूचे उत्तर और पूर्व भारत में दशहरा १९ अक्तूबर को संपन्न हुआ. विधि – विधान से प्रतिष्ठित अधिकांश प्रतिमाएं दिनांक १९ को ही विसर्जित हुई. गढ़ाफाटक की ऐतिहासिक महाकाली भी १९ अक्तूबर की गोधुली बेला में विसर्जन को चल पडी थी. भीड़ को देखते हुए कुछ प्रतिमाएं और कुछ विसर्जन जुलूस २० अक्तूबर को भी निकले. लेकिन पड़ाव की महाकाली के कार्यकर्ताओं द्वारा २२ अक्तूबर की शाम को विसर्जन जुलूस प्रारंभ करना यह समझ के बाहर हैं.
जबलपुर शहर की आबोहवा में धार्मिकता हैं. यह नगरी मातारानी की भक्त हैं. नवरात्रि इस शहर में अत्यंत श्रध्दा के साथ मनाई जाती हैं. हजारो भक्त उपवास रखते हैं, व्रत रखते हैं. हमारे धर्म ने पूजा विधि के कुछ यम – नियम, विधि – विधान बनाए हैं. पूजा विधि में पवित्रता बनाएं रखने के लिए यह आवश्यक हैं. ऐसे में नौ दिनों के लिए आयी हुई मातारानी को चौदह और पन्द्रह दिनों तक बिठाएं रखना यह कहा की धार्मिकता हैं..? यह विकृत मानसिकता हैं. यह अधर्म हैं. और इसीलिए पड़ाव की महाकाली के कार्यकर्ताओं ने जो कुछ उपद्रव किया, यह जबलपुर की प्रतिमा पर लांछन हैं..!
मुझे समझ में नहीं आ रहा हैं, जबलपुर की वह गौरवशाली, संस्कारक्षम, पावित्र्य से भरपूर नवरात्रि कहां गयी..? वो देश में मशहूर दशहरा कहां गयां..? सुपर मार्केट की देवी, सुनरहाई – नुनहाई की नेतृत्व करने वाली दुर्गा समितियां, वो गोविन्दगंज रामलीला के प्रबुध्द कार्यकर्ता, शकर घी भण्डार की देवी के कार्यकर्ता, अनेकों देवी के पंडालों में रतजगा करने वाले कार्यकर्त्ता, उनको अपने बुजुर्गियत अंदाज में सीधे रास्ते पर चलाने वाले त्रिभुवनदास मालपानी जी, भगवतीधर बाजपाई जी, शहर के अन्य गणमान्य नागरिक, मित्रसंघ जैसी सांस्कृतिक संस्था... क्या इनमे से किसी का अंकुश नहीं रहा हैं, ऐसे दुर्गा मंडलों पर..?
धर्म को गलत दिशा में ले जाने वाले ये जबलपुर के शुंभ – निशुंभ हैं. यही महिषासुर हैं, और यही चंड – मुंड हैं...! जबलपुर की सज्जन शक्ति से बिनती हैं, अनुरोध हैं, की ऐसे तत्वों पर अंकुश रखे. जबलपुर के दुर्गोत्सव की उज्ज्वल प्रतिमा को अक्षुण्ण बनाएं रखे..!
- प्रशांत पोळ