आज रात को भोपाल पहुंचा. कल से ‘लोकमंथन’ प्रारंभ हो रहा हैं. मैं भी उसमे हिस्सा ले रहा हूँ. मेरा विषय १४ नवंबर को हैं.
एअरपोर्ट से होटल तक के रास्ते पर अनेक जगह ‘लोकमंथन’ के होर्डिंग्स और पोस्टर्स दिखे. अच्छा वातावरण बना दिख रहा हैं.
अपने देश में इस प्रकार का यह पहला और अनूठा आयोजन हैं. ’राष्ट्र सर्वतोपरी’ इस विचार को मानने वाले राष्ट्रभक्तों के बीच यह शास्त्रार्थ होने जा रहा हैं. इस प्रकार के वैचारिक शास्त्रार्थ की अपने देश की प्राचीन परंपरा रही हैं. किन्तु अर्वाचीन काल का यह पहला ही आयोजन लगता हैं.
आयोजकों के शब्दों में –
“भारत के पास ज्ञान, परम्परा, आचार-विचार, लोक-संवाद और शास्त्रार्थ जैसी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण धरोहरें हैं। कई सदियों से भारत ने बिखराव की स्थितियों का सामना किया और राजनैतिक तथा सामाजिक क्षरण का शिकार भी हुआ; जिसका प्रभाव सामाजिक और धार्मिक मूल्यों के साथ-साथ भारत की ज्ञान परम्परा, विद्या और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा, लेकिन हमारा राष्ट्रीय मानस, धार्मिकता, आस्था, विश्वास, राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था ऐसी स्थिति में भी लगातार अक्षुण्ण बनी रही, क्योंकि भारतीय संस्कृति ने हमें एक सूत्र में बाँधे रखा। शताब्दियों से भारतीय संस्कृति ही हम करोड़ों भारतीयों को एक सूत्र में बाँधे हुए है। संस्कृति हमेशा जोड़ने का काम करती है, भारतीय संस्कृति में तो यह गुण अपार और अथाह है। वर्तमान समय में भारतीय विचारकों, चिन्तकों, स्वप्नद्रष्टा-संघर्षशील नेताओं ने हमें आत्मविश्वास से परिपूर्ण एक महान राष्ट्र बनाने के लिए तैयार किया है।
लोकमंथन, ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ (Nation First) की सघन भावना से ओतप्रोत विचारकों, अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए संवाद का मंच है, जिसमें देश के वर्तमान मुद्दों पर विचार-विमर्श और मनन-चिन्तन किया जायेगा। हम जानते ही हैं कि परस्पर संवाद एक ऐसा मंत्र है, जिसमें मनुष्यता के उत्कर्ष के सभी आयाम खुलते हैं। लोकमंथन के माध्यम से यह विश्वास सहज ही बनता है कि इसमें शामिल हो रहे बुद्धिजीवियों, चिन्तकों, मनीषियों, अध्येताओं के परस्पर विचार-विमर्श से भारत के साथ विश्व को नई दृष्टि मिलेगी। यह तीन दिवसीय विमर्श गहरी वैचारिकता की वजह से हमारे राष्ट्र के उन्नयन में सहायक सिद्ध होगा। समता, संवेदनात्मकता, प्रगति, सामाजिक न्याय, सौहार्द्र और सद्भाव की आकांक्षा राष्ट्रीयता के मूलमंत्र है। इसी भावना के साथ सामाजिक बदलाव और समाज का विकास इस राष्ट्रीय विमर्श का मूल उद्देश्य है। युवा अध्येताओं, विचारकों, विद्वानों के विचार हमारे समाज के संवर्धन में जुड़ सकें, इसका हरसम्भव प्रयत्न इस राष्ट्रीय अधिवेशन में किया जा रहा है।“
कल से प्रारंभ हो रहे इस ‘वैचारिक मंथन’ के लिए बस अब कुछ ही पल शेष हैं...!