-  प्रशांत पोळ

मराठी के प्रख्यात महाकवि, स्व. ग. दि. माडगुलकर के अजरामर महाकाव्य, ‘गीत रामायण’ में एक गीत की पंक्ति में वें कहते हैं –

“राम काय जन्मला, सोसण्यास आपदा....!”

अर्थात प्रभु श्रीराम का जन्म क्या मात्र विपदाओं को सहने के लिए ही हैं..?

इसी तर्ज पर कहना पड रहा हैं की “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या अपने स्वयंसेवकों का बलिदान मात्र देने के लिए ही हैं..?”

संघ स्वयंसेवकों की केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में लागातार हो रही हत्याओं के कारण आज यह कहना पड़ रहा हैं.

विचारों के धरातल पर आज मार्क्सवाद, साम्यवाद धराशाई हो रहा हैं. जमीनी कार्य के मापदंड पर भी मार्क्सवाद पराभूत हो रहा हैं. पुरानी पीढ़ी के साम्यवादियों के बच्चे संघ की शाखाओं में नियमित उपस्थिति दे रहे हैं. नई पीढ़ी, संघ के राष्ट्रवादी विचारों से प्रेरित हैं. केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में संघ के लाखों – लाखों अनुशासित कार्यकर्ताओं के कार्यक्रम लगातार हो रहे हैं. शाखाओं की संख्या में अभूतपूर्व वृध्दि हो रही हैं. समाज के सभी तबकों तक संघ कार्य का विस्तार हो रहा हैं...!

यह सब देखकर साम्यवादियों में बौखलाहट हैं. जबरदस्त बौखलाहट..! यह तो तय हैं की वैचारिक मंच पर या जमीनी कार्य के आधार पर वे संघ की बराबरी नहीं कर सकते. फिर विरोध का एक ही तरीका बचता हैं – हिंसा..! संघ कार्यकर्ताओं की बर्बरतापूर्वक ह्त्या..!!

भाग्यनगर (हैदराबाद) में चल रहे ‘अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल’ की बैठक में कल रा. स्व. संघ ने इसी विषय पर प्रस्ताव पारित किया हैं. केरल के मार्क्सवादी हत्यारों के खिलाफ पारित इस प्रस्ताव में संघ ने सरकार से दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करने के लिए कहा हैं.

संघ का कहना हैं की १९४२ से केरल में संघ का कार्य प्रारंभ हुआ हैं. संघ अपनी सहज प्रवृत्ति, ‘सभी से मित्रता – द्वेष किसी से नहीं’ के ध्येय को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों को एकजूट करने में लगा हैं. किन्तु दुर्भाग्य से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी सोच के अनुरूप, संघ पर अनेक हिंसात्मक हमले किये हैं.

अभी हाल की घटनाएं यदि देखे, तो विगत ११ जुलाई, २०१६ को भारतीय मजदूर संघ के श्री के. सी. रामचंद्रन को उनके घर में, उनकी गिडगिडाती पत्नी के सामने ही, मार्क्सवादी गुंडों ने अत्यंत क्रूरता से मार डाला. अभी दो हफ्ते पहले, १२ अक्तूबर को, संघ स्वयंसेवक के. रमित को उनके घर के सामने, दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया. दुर्भाग्यपूर्ण संयोग देखिये – १४ वर्ष पहले रमित के पिता, श्री उत्तमन, जो बस चलाते थे, की ह्त्या भी मार्क्सवादी गुंडों ने ही की थी. अभी तक केरल में डेढ़ सौ से ज्यादा समर्पित, निष्ठावान संघ स्वयंसेवकों की ह्त्या इन मार्क्सवादियों ने की हैं.

किन्तु इतने हिंसक आक्रमणों के बाद भी केरल में संघ स्वयंसेवक निर्भयता के साथ काम कर रहे हैं. इसका सकारात्मक असर समाज पर हो रहा हैं. संघ का काम बढ़ रहा हैं.

दुर्भाग्य से अभी जो केरल के मुख्यमंत्री बने हैं, कॉम्रेड पिनयारी विजयन, वह कन्नूर जिले के हैं. कन्नूर की कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव रहते समय उन पर संघ स्वयंसेवकों की हत्या के आरोप लगे थे. वे मुख्यमंत्री होते हुए, उनके ही गाँव, पिनयारी में संघ स्वयंसेवक की ह्त्या हुई हैं. मानो नरभक्षक शेर को गायों की रक्षा का दायित्व सौंपा हों..!

अपने प्रस्ताव में संघ ने संचार माध्यमों सहित जनसामान्य से आवाहन किया हैं, की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के हिंसात्मक तौर-तरीकों के विरोध में पूरे देश में जनमत निर्माण करने के लिए विभिन्न मंचों से आवाज उठाएं..!

- प्रशांत पोळ