नक्कारा कांग्रेसियों ने बर्बाद किये वे आठ वर्ष...!!
- प्रशांत पोल
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर.
प्रखर, ओजस्वी वक्ता. हिंदुत्व की प्रबल समर्थक.
२९ सितंबर, २००८ को मालेगांव में
(सन २००६ के बाद)
दूसरी बार विस्फोट हुआ.
७ अक्तूबर, २००८ को साध्वी प्रज्ञा को
पुलिस ने फोन कर के
सूरत में बुला लिया.
पूछताछ करने के बाद, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
१, २ और ३ नवम्बर को
साध्वी का
‘लाई डिटेक्टर टेस्ट’ हुआ.
तीन दिन चले इस टेस्ट में
पुलिस के हाथों कुछ नहीं लगा..
‘साध्वी जी झूठ बोल रही थी..’
ऐसा साबित ही नहीं हुआ.
लेकिन तब तक
केंद्र में राज करने वाली
कांग्रेस ने
‘भगवा आतंक’ की पटकथा लिख दी थी.
ऐसे में साध्वी को और
कर्नल पुरोहित को फसाना आवश्यक था.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर
झूठे आरोप गढ़ने के लिए...
‘आतंकी हिन्दू’ का कोई चेहरा आवश्यक था.
कांग्रेस की सरकार ने
साध्वी प्रज्ञा में उस चेहरे को ढूंढा....
इसलिये
कोई सबूत न मिलने पर भी
साध्वी को जेल के सीखचों में
बंद कर के रखा गया.
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आठ वर्ष...
अपनी तरुणाई के आठ वर्ष
साध्वी प्रज्ञा जी ने जेल में बिताएं.
उस जेल में..
जहाँ उन्हें भयंकर यातनाएं दी गई.
पुलिस ने मार मार कर
उनकी रीढ़ की हड्डी को कमजोर कर दिया..
आज साध्वी जी का
अपने पैरों पर चलना मुश्किल हैं..!
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मुंबई की जेल में
आपराधिक मामलों में पकड़ी गयी और
ड्रग्स के मामलों में लिप्त ऐसी
अफ्रिकी महिलाओं से
पुलिस ने, साध्वी जी को पिटवाया...
उनके साथ ऐसा अमानुषिक व्यवहार किया गया..
जो किसी और स्त्री के साथ
हम सोच भी नहीं सकते..!
ये सब इसलिए
की साध्वी अपने ऊपर लगाये झूठे आरोप
स्वीकार कर ले..!
दरम्यान साध्वी जी को कैंसर हुआ.
लेकिन उन्हें अच्छी चिकित्सा सुविधाओं से भी
वंचित रखा..
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इन आठ वर्षों में
मात्र दो दिन, साध्वी जेल से बाहर आयी,
अपने पिता की अंत्येष्टि में..!!
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इन आठ वर्षों में
साध्वी जी पर कांग्रेस सरकार
कोई भी आरोप नहीं रख सकी, नहीं गढ़ सकी..
गुरूवार, २४ अप्रैल २०१४ के दिन...
जब भाजपा सत्ता में नहीं आई थी,
और देश में चुनाव चल रहे थे...
उस दिन
राष्ट्रीय जाँच अभिकरण (एन आई ए) ने
२००८ के मालेगांव बम धमाकों के
आरोपियों के खिलाफ
४,५०० पन्नों का आरोप पत्र
न्यायालय में दाखिल किया....
उसमे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का नाम ही नहीं था...!
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इन आठ वर्षों में...
भारत में मानवाधिकार का आवाज बुलंद करने वाले..
हर घटना पर गले फाड़ने वाले तमाम कार्यकर्त्ता
साध्वी प्रज्ञा के मामलों में बिलकुल चुपचाप थे...
वे तमाम स्त्री-वादी कार्यकर्ता,
सेक्युलर बुध्दिजीवी भी खामोश थे..
‘अफजल तेरे कातिल जिन्दा हैं...’
का नारा लगाने वालों को
शायद
साध्वी जी का जेल में रहना ही
रास आ रहा था...
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आठ वर्ष.
एक तरुण, राष्ट्रभक्त साध्वी को
जेल में अमानुष यातनाएं देकर
त्रस्त करने वाले,
‘भगवा आतंक’ का मिथक निर्माण करने वाले
उन, अल्पसंख्यांकों का तुष्टिकरण करने वाले
नक्कारा कांग्रेसी पुरोधाओं से
पूछना चाहिए...
राष्ट्र के लिए समर्पित ये आठ वर्ष,
जो आप ने जेल में बर्बाद करवाएं...
वो कहाँ से लौटाओंगे..?
- प्रशांत पोळ