- प्रशांत पोल

सन १९७१ का बंगला देश का युध्द यह भारतीय उप महाद्वीप की अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी. इस युध्द ने न केवल इस उपमहाद्वीप का इतिहास और भूगोल बदल दिया, वरन भारत के सैन्य शक्ति की धाक अमरीका में भी जमा दी थी. निक्सन और किसिंजर को चिढाते हुए भारत ने पाकिस्तान को धुल चटा दी थी.

यह युध्द कैसे प्रारंभ हुआ, क्यूं प्रारंभ हुआ, इस युध्द में अमेरिका की भूमिका क्या थी, इन सभी प्रश्नों के, तथ्यों पर आधारित उत्तर देती हुई पुस्तक हैं – ‘द ब्लड टेलीग्राम’. इसके शीर्षक में ‘ब्लड’ शब्द का अर्थ दोहरा हैं. ‘ब्लड’ यह शब्द इसलिए की १९७१ के प्रारंभ में ‘पूर्व पाकिस्तान’ (आज का बंगला देश) में अमेरिकी उप-उच्चायुक्त का नाम था, ‘आर्चर ब्लड’. इन ब्लड साहब ने लगातार अमेरिकी प्रशासन को, अमेरिका के राष्ट्रपति को जो रिपोर्ट्स भेजी, उन सब में ‘पश्चिम पाकिस्तान’ ने ‘पूर्व पाकिस्तान’ में किया हुआ रक्तरंजित अत्याचार छाया था. ‘द ब्लड टेलीग्राम’ इस शीर्षक का अर्थ यह भी हैं.

सन १९७० के दिसंबर में तथा १९७१ के जनवरी में, पाकिस्तान के लश्करी तानाशाह याह्या खान ने चुनाव करवाएं. अनेक वर्षों बाद हो रहे इन चुनावों में पाकिस्तान की जनता ने भर भर के मतदान किया. इन चुनावों में पूर्व पकिस्तान के शेख मुजीब उर-रहमान के नेतृत्व वाले ‘अवामी लीग’ ने १६७ सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया. पश्चिम पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भुट्टो की पार्टी बुरी तरह चुनाव हार गयी. पूर्व पाकिस्तान में १६९ में से १६७ सीटों पर अवामी लीग के उमेदवार चुन कर आए थे. अर्थात अब पूर्व पाकिस्तान के बंगालियों की हुकूमत पूरे पाकिस्तान में चलने वाली थी.

भला याह्या खान और भुट्टो, यह सब कैसे होने देते..! याह्या खान ने यह चुनाव ही रद्द कर दिए. शेख मुजीब उर-रहमान को गिरफ्तार कर लिया और आवामी लीग पर प्रतिबन्ध लगा दिया. यह लोकतंत्र की खुली हत्या थी. दुनिया के लोकतंत्र प्रेमी सरकारों ने इसका धिक्कार करना अपेक्षित था. अमेरिका तो ऐसे देशों का अगुवा रहा हैं. लेकिन उसने पाकिस्तान का धिक्कार तो किया ही नहीं, वरन समर्थन किया.

पाकिस्तान ने ‘पूर्व पाकिस्तान’ में अपनी फ़ौज भेजी. ९०,००० से ज्यादा सैनिक ढाका में उतारे गए, जो पूरे बंगला देश में छा गए. इन सैनिकों ने बंगला भाषी नागरिकों पर पाशविक अत्याचार किये. अनेक बंगाली बुध्दिजीवियों को बर्बरता से मौत के घाट उतारा. लाखों बंगाली स्त्रियों पर बलात्कार कियें. करोडों देशवासियों को देश छोड़ने पर मजबूर किया.

इस दौरान लगभग तीन लाख बंगालियों को मारा गया. इनमे ९०% से ज्यादा हिन्दू थे. डेढ़ करोड़ नागरिकों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. इनमें भी ७०% से ज्यादा हिन्दू थे.

आर्चर ब्लड यह सब देख रहे थे. बंगलादेशियों पर इतने भयंकर अत्याचार हो रहे हैं, और अमेरिका शांत बैठा हैं, यह बात उन्हें अस्वस्थ कर रही थी. उस पर से जब उन्होंने देखा की  अमेरिकी विमानों से पाकिस्तानी सैनिकों की आवाजाही हो रही हैं, और पाकिस्तानी सैनिक अमेरिकी शास्त्रों से हिन्दुओं का ‘वंश विच्छेद’ (Genocide) कर रहे हैं, तब उनसे रहा नहीं गया. उन्होंने अमेरिकी प्रशासन को एक लंबा चौड़ा टेलीग्राम भेजा, जो अमेरिकी मीडिया में ‘द ब्लड टेलीग्राम’ नाम से मशहूर हुआ.

‘गेरी बास’ के लिखे इस पुस्तक में अनेक ऐसे तथ्य हैं, जो हमें झकझोर देते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के भारत के प्रति घृणित विचार भी हमें समझते हैं. ‘गेरी बास’ इस पुस्तक में मुख्य रूप से एक ऐसा रहस्य उजागर करते हैं, जो शायद दुनिया इस के पहले नहीं जानती थी. १९७० और १९७१ में अमेरिका के चीन के साथ संबंध अत्यंत तनावपूर्ण थे. अमेरिकी राष्ट्रपति चीन के साथ सौहार्द्र पूर्ण संबंध बनाना चाहते थे. इसके लिए उनको आवश्यकता थी किसी मध्यस्थ की. पाकिस्तान के जनरल याह्या खान, यह भूमिका निभाने की परिस्थिति में थे. इसलिए अमेरिका उन्हें नाराज नहीं करना चाहता था. वैसे भी निक्सन, भारत से घृणा करते थे. और इन सब कारणों से बंगला भाषियों पर होने वाले पाशविक अत्याचारों के बावजूद भी, अमेरिका पाकिस्तान को ही समर्थन देता रहा. १९७१ के मध्य में अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने पाकिस्तान के रास्ते, चीन की गुप्त यात्रा की थी, उसका वर्णन भी इस पुस्तक में आता हैं.  

पुस्तक की भाषा शैली अत्यंत रोचक हैं. बंगला भाषी हिन्दुओं पर १९७१ में हुए अत्याचारों पर पहली बार तथ्यों के साथ इतना विस्तृत विवेचन किया गया हैं. श्रीमती इंदिरा गाँधी की उस समय की दृढ़ता को भी अच्छी तरह दिखाया हैं. अमेरिका का उस समय का दवाब, अमरीकी सातवाँ बेड़ा और बंगला देश के युध्द में हुई अपनी शानदार जीत का वर्णन भी हैं.

१९७१ के उस रोमांचकारी कालखंड के समझने के लिए ‘द ब्लड टेलीग्राम’ यह पुस्तक अत्यंत उपयुक्त हैं..! संभव हैं, तो अवश्य पढ़े.

- प्रशांत पोल